देश में कोरोना के 6 हॉटस्पॉट में बुजुर्गों को दी जाएगी टीबी की वैक्सीन, मध्य प्रदेश और राजस्थान भी होंगे शामिल

टीबी से बचाने वाली बीसीजी वैक्सीन कोरोना का संक्रमण रोकने में कितनी प्रभावी है, इसे जांचने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) देश के 6 हॉटस्पॉट में रिसर्च कराएगा। शोध के दौरान, यह जाना जाएगा कि हॉटस्पॉट में रहने वाले बुजुर्गों पर कोरोना का असर और इससे होने वाली मौत की दर कितनी है। आईसीएमआर के मुताबिक, यह रिसर्च मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु में 60 साल से अधिक उम्र के 1500 लोगों पर की जाएगी।
जो बुजुर्ग संक्रमित नहीं उन्हें लगेगा टीका
आईसीएमआर के मुताबिक, बीसीजी का टीका उन बुजुर्गों को लगाया जाएगा जो अभी तक संक्रमित नहीं हुए हैं ताकि ये जाना जा सके कि टीका लगने के बाद इनमें संक्रमण की गंभीरता और मौत का खतरा कितना है। बीसीजी-कोविड का परीक्षण आईसीएमआर के पांच अन्य केंद्रों पर भी होगा। इनमें अहमदाबाद, भोपाल, मुंबई, जोधपुर के संस्थान शामिल हैं। बीसीजी का टीका देश में नवजात बच्चों को लगाया जाता है।
6 महीने तक नजर रखी जाएगी
आईसीएमआर के मुताबिक, वैक्सीन देने के बाद बुजुर्गों पर अगले 6 महीने तक नजर रखी जाएगी। यह एक तरह का ट्रायल है। रिसर्च को नेशनल इंस्टीट्यूट फॉररिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस के साथ मिलकर किया जा रहा है। आईसीएमआर के चेन्नई स्थित राष्ट्रीय यक्ष्मा अनुसंधान संस्थान में परीक्षण की अनुमति भी मिल चुकी है।
डब्ल्यूएचओ समेत कई विशेषज्ञों ने इस वैक्सीन पर भरोसा जताया
विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल डॉट्रेडोस अधानोम समेत कई एक्सपर्ट बीसीजी वैक्सीन पर अपना भरोसा जता चुके हैं। उनका कहना है कि इस वैक्सीन में इम्युनिटी को बढ़ाने कीखासियत है जो सांस से जुड़े संक्रमण से भी बचा सकती है। लेसेंट जर्नलमें प्रकाशित शोध में एक्सपर्ट का कहना है कि यह वैक्सीन शरीर में मेटाबॉलिक और एपिजेनेटिक बदलाव करती है जिससे इम्यून सिस्टम का रेस्पॉन्स तेज होता है।
टीबी की बीसीजी वैक्सीन से जुड़ी 5 बातें
1- सबसे पहले समझते हैं कि बीसीजी क्या है?
इसका पूरा नाम है बेसिलस कामेट गुएरिन। यह टीबी और सांस से जुड़ी बीमारियों को राेकने वाला टीकाहै। बीसीजी को जन्म के बाद से छह महीने के बीच लगाया जाता है। दुनिया में सबसे पहले इसका 1920 में इस्तेमाल हुआ। ब्राजील जैसे देश में तभी से इस टीके का इस्तेमाल हो रहा है।
2- बीसीजी के टीके में क्या होता है?
इस टीके में बैक्टिरियम की वे स्ट्रेन्स होती हैं, जो इंसानों में फेफड़ों की टीबी का कारण है। इस स्ट्रेन का नाम मायकोबैक्टिरियम बोविस है। टीका बनाने के दौरान एक्टिव बैक्टीरिया की ताकत घटा दी जाती है ताकि ये स्वस्थ लोगों में बीमारी न कर सके। इसे मेडिकल की भाषा में एक्टिव इनग्रेडिएंट कहा जाता है। इसके अलावा वैक्सीन में सोडियम, पौटेशियम और मैग्नीशियम साल्ट, ग्लिसरॉल और साइट्रिक एसिड होता है।
3- क्या बीसीजी का वैक्सीन भी वायरस से लड़ता है?
नहीं। मेडिकल साइंस की नजर में बीसीजी का वैक्सीन बैक्टीरिया से मुकाबले के लिए रोग प्रतिरोधक शक्ति देता है। इससे शरीर को इम्यूनिटी मिलती है, जिससे वह रोगाणुओं का हमला झेल पाता है। हालांकि, कोरोना एक वायरस है, न कि बैक्टीरिया। लेकिन स्टडी के हिसाब से संभव है कि शरीर की इम्यूनिटी अच्छी होने के कारण यह वैक्सीन कोरोना से मुकाबले में मददगार बन सके, लेकिन इस पर अभी रिसर्च जारी है।
4- कोरोना से जुड़ी स्टडी में बीसीजी का नाम कैसे सामने आया?
न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस ने एक स्टडी की। यह स्टडी 21 मार्च को सामने आई।बीसीजी वैक्सीनेशन और इसके कोरोना पर असर का पता लगाना इसका मकसद था। इसमें बिना बीसीजी वैक्सीनेशन पॉलिसी वाले इटली, अमेरिका, लेबनान, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों की तुलना जापान, ब्राजील, चीन जैसे देशों से की गई, जहां बीसीजी वैक्सीनेशन की पॉलिसी है। इसमें चीन को अपवाद माना गया, क्योंकि कोरोना की शुरुआत इसी देश से हुई थी।
5- क्या यह मान लिया जाए कि बीसीजी का टीका कोरोना से बचाएगा?
स्टडी में वैज्ञानिकों ने कहा कि हो सकता है कि बीसीजी कोरोनावायरस से लंबे समय तक सुरक्षा दे। लेकिन इसके लिए ट्रायल करने होंगे। यह स्टडी सामने आने के बाद ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, जर्मनी और यूके ने कहा है कि वे कोरोनावायरस के मरीजों की देखभाल कर रहे हेल्थ वर्कर्स को बीसीजी का टीका लगाकर ह्यूमन ट्रायल शुरू करेंगे। वे यह देखेंगे कि क्या इस टीके से हेल्थ वर्कर्स का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। ऑस्ट्रेलिया ने भी बीते शुक्रवार कहा कि वह देश के करीब 4 हजार डॉक्टरों और नर्सों और बुजुर्गों पर बीसीजी वैक्सीन का ट्रायल शुरू करेगा।
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